सोमवार, 17 नवंबर 2008

हाथी को छोड़ पूंछ पकड़ने की कवायद

अभी हर चैनल पर मालेगांव ब्लास्ट की धूम है .अख़बारों के पन्ने रंगे पड़े हैं .साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित के किस्से लोग चटखारे लेले के पढ़ रहे हैं .चलिए अब हिंदू आतंकवाद का चेहरा भी सामने आ रहा है .नकली धर्म-निर्पेक्ष पार्टियाँ तो उछल रही हैं .अब उन्हें लग रहा है की इस घटना के बाद हिंदू समर्थक पार्टियाँ बर्बाद हो जाएँगी और दिल्ली पर फिर से उन्ही का राज कायम हो जाएगा .महारास्ट्र की ऐ टी एस का बड़ा नाम हो रहा है .अब देखिये कितनी होशियारी और चतुराई से पब्लिक और मीडिया का ध्यान राज ठाकरे की गुंडागर्दी से हटा दिया गया.जितने बड़े ब्लास्ट हुए वाराणसी,जयपुर,अहमदाबाद ,गोवाहाटी,उनमे न जाने कितने लोग मारे गए ,कश्मीर में रोज लोग मारे जा रहे हैं हमारी सेना और पुलिस के लोग सैंकडों की संख्या में मारे जा रहे हैं .परन्तु आज तक इतनी तत्परता किसी मामले में पुलिस या ऐ टी एस ने नही दिखाया ,जितना मालेगांव में .ये शुध्ध राजनीती और वोट निति है .पुलिस और सेना को इस में शामिल करना घोर आपत्तिजनक है। लेकिन इन वोट के सौदागरों को कौन समझाए .दावूद को पकड़ नही सकते तो चलो एक साध्वी को पकड़ने की बहादुरी ही दिखा दे .पुरा हाथी सामने से निकल गया अब पूंछ पकड़ने की बहादुरी दिखाना है.वाह जनाब ...................

रविवार, 16 नवंबर 2008

फिर वही सब कुछ

लो फिर आ गए चुनावों के दिन .वादों के दिन ठगने के दिन ठगाने के दिन .फिर वही आचार संहिता की तलवार लटकाई जायेगी चलायी नही जायेगी .टिकेट बेचने खरीदने के दिन .जात के आधार पर वोट मांगने के दिन ,धर्म के आधार पर वोट छिनने के दिन.वोही गला फाड़ कर नारे लगाने के दिन ,पोस्टरों और बैनर से diwaal पाट देने के दिन हेलीकॉप्टर देखने जुटी भीड़ को समर्थक मान लिया जाएगा .नक्साली अपना वोट वहिसकार का फतवा जारी करेंगे .ब्लास्ट में न जाने कितने पुलिस और मतदान कर्मी मारे जायेंगे .गाड़ियों का टोटा पड़ जाएगा स्कूल कॉलेज बंद अफरा तफरी का माहौल ..टीवी पर वही विश्लेसन वही परिणाम इन्ही में से कोई जीतेगा या तो जात पार्टी ,या धर्म पार्टी सेठों या विदेशी पैसों की सहायता से फिर वही राज काज के पुराने ढंग वही महंगाई वही ब्लास्ट सब वही ..तो क्यों ये चुनाव का नाटक किया जाता है क्यों नहीं कांग्रेस बीजेपी सीपीएम सी पि आई समाजवादी बीएसपी राजद आदि आदि मिल कर सरकार चलाते हैं इससे चुनाव का खर्चा तो बच जाएगा

रविवार, 21 सितंबर 2008

S I-I /-\ I3 D.... I\I I R /-\ I\I T /-\ R

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buy tales of beedle the bard

शुक्रवार, 19 सितंबर 2008

आज का विचार:आराम करने का आनंद तभी है जब आपके पास इसके लिए समय नही हो

आज हमारे देश में क्रिकेट खिलाड़ियों को भगवान और क्रिकेट को पूजा समझा जाता है । क्रिकेट मैच हो तो सड़को पर सन्नाटा पसर जाता है ,ऑफिस ,स्कूल.,कॉलेज में उपस्थिति कम जाती है ,और जीत गए तो पटाखे हार गए तो ऐसा मातम मनता है मानो किसी सगे की मौत हो गयी हो. हम ये भूल जाते हैं की क्रिकेट सिर्फ़ उन्ही देशों में खेला जाता है जो देश अंग्रेजों के गुलाम थे जैसे...भारत,पाकिस्तान,ऑस्ट्रेलिया,साउथ अफ्रीका ....कोई भी विकसित देश इसे नही खेलता जैसे....अमेरिका,जापान,चीन,रूस,,मगर हम तो पागल हो गए हैं अपने पारंपरिक खेल होंकी को भूल चुके हैं .क्रिकेट एक कैंसर है जिसने सारे देसी खेलों को निगल लिया है और अब तो आई .पि.एल.के आने के बाद ये सबसे बड़ा व्यापार हो गया है .सरकार भी इस पर मेहरबान है ,बड़े-बड़े नेता इस खेल से जुड़ना गर्व की बात मानते हैं .क्या कोई हमारे देशी खेलों की सुध लेगा ?

बुधवार, 17 सितंबर 2008

सीन 1

बाप कुछ काम कर रहा है ,छोटा बच्चा बार बार पूछ रहा है -पीताजी ये कया है ?बेटा,ये कौवा है ..ये कया बोल रहा है ?ये काओं -२ कर रहा है ,बेटा फीर पूछता है ये कया है ,बाप बार बार हँसते हुए ,बेटे को दुलराते हुए जवाब दे रहा है --बेटा,ये कौवा है. करीब २० बार सवाल और २० बार जवाब प्यार से मनुहार से कोई झुंझलाहट नही । सीन-२ ------बाप बुढा हो चुका है .आँगन में खाट पर लेता है .बेटा कुछ काम कर रहा है .फ़ोन बजता है .बाप पूछता है ..बेटे कीसका फ़ोन है ?एक friend का ...बेटे का जवाब ,कीस का ,फीर बाप पूछता है ...अरे कहा न फ्रेंड का ,फीर बाप कुछ पूछना चाहता है ..बेटा डांट देता है.....अरे,सोईए न बक बक कीये जा रहे हैं .

रविवार, 14 सितंबर 2008

पीतर-पक्षः

आज से पित्र-पक्षः शुरू हो गया है .अपने पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए लोग पिंड दान करते हैं .खासकर गया (बिहार) में देश विदेश से लोग जुटते हैं और फल्गु नदी के किनारे विष्णुपद मन्दिर के निकट पिंड दान अर्पित करते हैं .मान्यता है की यहाँ पिंड दान करने से आत्मा को मुक्ति मिल जाती है ,कहा जाता है की यहाँ श्री राम ने भी महाराजा दशरथ का पिंड दान किया था .यह महान परम्परा है .परन्तु हकीकत क्या है ?मन्दिर के बाहर सैकडों बूढे बुढियां भीख मांगते मिल जायेंगे ,जिन्हें उनके बाल बच्चों ने बेघर कर दिया है .हम मरने वालों के लिए खूब दान करते हैं परन्तु जो जिन्दा हैं उनसे बात तक नही करते और या तो हॉस्पिटल में भरती करा देते हैं या फिर ओल्ड होम में फ़ेंक आते हैं ."जिन्दा रहे तो लठम -लठा मरे तो ले गए काशी" जो जिन्दा हैं हम उनकी सही ढंग से देखभाल करे तो हमारे पीतर ऐसे ही प्रसन्न हो जायेंगे

आज का विचार

अगर आपके ह्रदय के रेजर में धार नही है तो परिस्थितियों की शेविंग क्रीम का कोई गुनाह नही .....आहा जिंदगी

गुरुवार, 11 सितंबर 2008

दहेज़

बेटीयों के बाप को हमेशा ये लगता है की कोई चमत्कार हो जाएगा और बीना दहेज़ के उनकी बेटी की शादी हो जायेगी. .परन्तु जब वे अनगीनत वैवाहीक ads के आधार पर तलाश शुरू करते हैं तो पता चलता है की उनकी बेटी के संस्कार ,गुन ,और पढ़ाई का कोई मोल नही है .लम्बाई गोराई के बाद सीधे बात लेनदेन पर आ जाती है .अब आज शहर में घर .टीवी फ्रीज तो सबको चाहिए ,३ बेड रूम फ्लैट ,ए.सी ,बड़ी कार ,ddamas का डायमंड सेट ,5star में रेसेप्शन ,वीदेश में हनीमून ,नई सूची है जिसे पुरा करते करते आप ख़ुद बीक जाएँ तो उनका क्या ,बेटी आपकी है तो खर्च कोन करेगा .अब आपकी बेटी भी इंजिनियर या डॉक्टर है तो क्या हुआ, है तो बेटी ही ,द्वीतीय दर्जे की नागरीक .हम चाँद पे चले जायें ,पाताल को खोद डालें ,लेकीन इस दहेज़ का कुछ नही बिगाड़ सकते .बड़े लोगों में ये झमेला नही है ,वहां सब चलता है लेकीन समस्या middle क्लास में ही है ,जहाँ पैसे हैं नही और इज्जत ढोना मजबूरी है .

मंगलवार, 9 सितंबर 2008

बीमार बाप

एक बुढा बीमार बाप पुराने सामान की तरह होता है .घर के सबसे पुराने गंदे कमरे में टूटे फूटे सामान के साथ उसे जगह दी जाती है .उसकी खांसी से सास बहु के serial देखने में दिक्कतें आती हैं .उसके कराहने से ध्यान में बैठे बेटे का ध्यान टूट जाता है .उसकी दवाई के खर्च के कारन नया टी.वी नही ख़रीदा जा सका है .उसके गंदे कपड़े दाई भी नही धोती है .वह बात करने के लीये तरसता है ,परन्तु बेटा सेमीनार में बीजी है ,बहु shopping में ,और छोटे बच्चों को मना कर दीया गया है की करीब जाने से बीमार हो जाओगे .इंतज़ार है मौत का

सोमवार, 8 सितंबर 2008

धोनी का विज्ञापन देखा है ?बालों के क्रीम का ,घड़ी का ,कपडों का ,वगैरह -२ .वोह एक अच्छे खिलाड़ी हैं परन्तु विज्ञापनों में उनकी छवि एक अनपढ़ आदमी की बनती है .वे कहते हैं इतनी पढ़ाई में एक वर्ल्ड कप तो ले ही लिया और फिर आगे फरमाते हैं पढ़ाई कुछ भी हो प्यास होनी चाहिए .अब इससे वे क्या कहना चाहते हैं ?की पढने लिखने की कोई जरुरत नही बस नोट कमाना ही ज़िन्दगी का मकसद है और मैं आपको बताऊँ की झारखण्ड सरकार ने उन्हें अपने सर्व शिक्षा अभियान का ब्रांड एम्बेसडर चुना है ..ये कैसा विरोधाभास है ,एक विज्ञापन में वे फरमाते हैं की रांची में सब लोग एक खास तरह का क्रीम लगा कर मोड हो गए हैं अब उन्हें क्या पता की उस क्रीम की कीमत ५० रुपये है और यहाँ एक दिहाडी मजदूर को डेली ९० रुपये मिलते हैं अब इसमे वो खायेगा की क्रीम लगायेगा .एक विज्ञापन में वे कहते हैं की आदमी की पहचान कपडों से होती है ,अब उन्हें कौन बताये की लंगोटी पहनकर एक आदमी ने सुइट बूट वाले अंग्रेजों को भगा दिया था .धोनी जी विज्ञापनों का स्क्रिप्ट भी पढ़वा लिया कीजिये वरना आपको लोग ऐसे क्रिक्केटर के रूप में लोग याद करेंगे जिसने रन और पैसे खूब बनाये मगर उनका सामान्य ज्ञान जीरो था

शुक्रवार, 5 सितंबर 2008

योग

आज कल योग फैशन हो गया है .वास्तव में योग[+] आत्मा से परमात्मा के मिलन का रास्ता है .परन्तु कुछ लोगों ने इसे व्यापार की शक्ल देदी .योग जिसे अंग्रेजीदां "योगा "कहते हैं ,आजकल व्यायाम हो गया है .एक साधू ने तो इतना आक्रामक प्रचार किया की १००० करोड़ का मार्केट खड़ा हो गया ,तरह तरह के जूस ,भस्म ,गोली और वाकायदा हर राज्य में अस्पताल खोलकर वजन घटाने का धंधा चालू कर दिया .महर्षि पतंजलि ने कभी ऐसा नही सोचा होगा की उनकी ऐसी दुर्गति करेंगे कुछ लोग .ध्यान गायब हो गया बच गया बस वजन घटाना चर्बी कम करना ,शरीर sundar हो जाए भले ही मन में आतंक भरा हो ,ये कैसा योग है बाबा कामदेव ?

बुधवार, 3 सितंबर 2008

आने वाला पल

तो पर्व त्योहारों के दीन आ गए |तीज,गणेश चतुर्थी ,जितीया और फीर दुर्गा पूजा ,दीवाली ,छठ । id xmasये सारे पर्व हमें परीवार से फीर से मीलने का अवसर देते हैं अच्छाइयों की ओर अग्रसर करते हैं और अंतरात्मा के शुधीकरण का मार्ग दीखाते हैं.आओ सब मिलजुलकर इन्हे मनाएं साथ ही उनका भी dhyan रखें जो दुखी हैं

शुक्रवार, 29 अगस्त 2008

बीहार में प्रलय

बीहार abhishapt है .लालू से पीछा छुटा तो बाढ़ ने धर दबोचा .५० लाख लोग बेघर ,दर-दर भटकने को मजबूर कोई देखने वाला नही कीसी अन्या राज्य में ऐसा होता तो अबतक राहत के ढेर लग जाते मगर बीहार को अछूत क्यों माना जाता है