गुरुवार, 11 सितंबर 2008

दहेज़

बेटीयों के बाप को हमेशा ये लगता है की कोई चमत्कार हो जाएगा और बीना दहेज़ के उनकी बेटी की शादी हो जायेगी. .परन्तु जब वे अनगीनत वैवाहीक ads के आधार पर तलाश शुरू करते हैं तो पता चलता है की उनकी बेटी के संस्कार ,गुन ,और पढ़ाई का कोई मोल नही है .लम्बाई गोराई के बाद सीधे बात लेनदेन पर आ जाती है .अब आज शहर में घर .टीवी फ्रीज तो सबको चाहिए ,३ बेड रूम फ्लैट ,ए.सी ,बड़ी कार ,ddamas का डायमंड सेट ,5star में रेसेप्शन ,वीदेश में हनीमून ,नई सूची है जिसे पुरा करते करते आप ख़ुद बीक जाएँ तो उनका क्या ,बेटी आपकी है तो खर्च कोन करेगा .अब आपकी बेटी भी इंजिनियर या डॉक्टर है तो क्या हुआ, है तो बेटी ही ,द्वीतीय दर्जे की नागरीक .हम चाँद पे चले जायें ,पाताल को खोद डालें ,लेकीन इस दहेज़ का कुछ नही बिगाड़ सकते .बड़े लोगों में ये झमेला नही है ,वहां सब चलता है लेकीन समस्या middle क्लास में ही है ,जहाँ पैसे हैं नही और इज्जत ढोना मजबूरी है .

1 टिप्पणियाँ:

Anonymous बेनामी ने कहा…

जैसे तैसे लड़की की शादी हो जाती है तो फिर शादी के बाद रोज़ लड़की को खुश रखने के नाम पर मांगों की सूची। मां-बाप सहते हैं कि चलो कैसे भी लड़की खुश तो रहे । लेकिन लालच का भला कोई अंत होता है। जब तक मांग पूरी तब तक ठीक, मना होते ही लड़की से जानवरों की बरताव। परेशान होकर लड़की खुदकुशी कर लेती है, मां बाप के घर लौट जाती है या फिर जला दी जाती है। अगर लड़की विरोध करना चाहे, पुलिस की मदद लेना चाहे तो आजकल समाज सेवकों का नया शगल हो गया है दहेज की शिकायतों को ब्लैकमेलिंग बताना। इन लोगों ने इतना दबाव बना दिया है कि सरकार दहेज कानून को लचीला बनाने पर विचार कर रही है। और ये हालत तो तब है जब राष्ट्रीय अपराध नियंत्रण ब्यूरो के ताजा आंकडों के मुताबिक देश में हर रोज करीब १४ महिलाएं दहेज़ की भेंट चढ़ जाती हैं । बीते १२ सालों में दहेज़ उत्पीडन के मामलों में १२० फीसदी बढोतरी हुई है। ये वो आंकड़े हैं जो कागज़ों पर आये। जिनकी शिकायत नहीं हुई या जो थानों तक पहुंच नहीं पाये या थानों में ही ले दे कर निपटा दिये गये या जिनमें मां बाप लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाये वो अलग हैं। महिला आयोग और महिला विभा मिलकर दहेज कानून में पलीता लगाने की कोशिश कर रहे हैं। केंद्रीय महिला और बाल कल्याण मंत्री श्रीमती रेणुका चौधरी और महिला आयोग की प्रमुख गिरिजा व्यास देश की दमदार महिलाओं में से एक हैं वो आम महिला का दुख शायद नहीं समझ सकतीं। दहेज कानून को कमजोर करने का पाप करने के बजाय वो इसको और मज़बूत करने का पुण्य करें। इस देश की महिलायें उनकी हमेशा कर्जदार रहेंगी। उन महिला संगठनों को भी जागना चाहिये जिनकी पदाधिकारी टीवी पर बैठकर बड़ी बड़ी बातें करती हैं। लेकिन हमको पता है ये लोग महिला आयोग या महिला मंत्रालय के खिलाफ नहीं जा सकते क्योंकि इन्हीं से मिलने वाले पैसे से तो इनके पांच सितारा संगठन चलते हैं। अगर कोई ये कहता है कि महिला ही महिला की सबसे बड़ी दुश्मन होती है तो क्या गलत कहता है।

12 सितंबर 2008 को 2:36 am बजे

 

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